"अयोग्यता" को सर पर ढ़ोता "प्राचीनतम राजनीतिक दल"








सभी भग्नि बंधुओं को हर हर महादेव 🙏🙏🙏

आज बात करते हैं एक राजनीतिक दल में "अध्यक्ष पद" को लेकर चल रही उठापटक की...
उठापटक भी उन लोगों की जिन लोगों ने राजकुमार को राजकुमार मानने से मना कर दिया और "फुल टाइम लीडरशिप" एवं "फील्ड में सक्रिय नेता" की मांग के साथ एक तरह से राजकुमार को अध्यक्ष पद के सिंहासन पर बैठाने को लेकर अपनी अदृश्य सी पर बड़ी ही पारदर्शी असहमति प्रदान की।
अब भला राजमाता तो राजमाता ठहरीं और राजकुमार को राजकुमार मानने से कोई मना सका है क्या आज तक???

तो फिर वर्तमान में राज्यसभा में विपक्ष के नेता एवं पार्टी के अन्य और प्राचीन निष्ठावान नेताओं की प्सेरमुख पदों से  छुट्टी हो गई है और साथ ही कथित रूप से "राजकुमार" द्वारा उन्हेें और "चिट्ठी-पत्री बम" फोड़ने वाले अन्य नेताओं को "बीजेपी का एजेंट"  शीर्षक से सम्मानित किया गया।

उसके पश्चात् राजमाता की हर बात पर हां में सर हिलाने वाले लोकप्रिय और राजमाता की "जी हुज़ूरी" की फील्ड में फुल टाइम सक्रिय रहने वालों को मैदान में सजा दिया गया है।

अब जिस तरह का "क्षेत्ररक्षण" (fielding) राजमाता द्वारा जमाया गया है, राजकुमार का अध्यक्ष पद के सिंहासन पर विराजमान होने का रास्ता साफ हो चुका है।

तो जनता को इससे क्या समस्या होनी चाहिए??? 

कई लोग इस बात में रस लेंगे कि "अब किसी व्यक्ति को चमचे की उपाधि सोशल मीडिया पर प्रदान कर सकेंगे" लेकिन मुझे इस बात में इसीलिए रस नहीं है क्योंकि एक इतना पुराना  राजनीतिक दल जो कि अभी लोकसभा में एक "प्रमुख विपक्षी दल" भी है,

उस राजनीतिक दल के नेतृत्व की भारत को लेकर सोच, उसका भाव क्या है?? 

उसकी भारत को लेकर दृष्टि, उसका विज़न (vision) क्या है??

उस नेतृत्व ने भारत को कितना जाना है और भारत के प्रति उसकी सोच क्या है??

क्या भारत के एक बहुसंख्यक वर्ग और उनके विचारों में कोई तालमेल है या नहीं?? 

क्या वो भारत का दर्शन समझ सके हैं या नहीं??

अब इन सारे प्रश्नों को सुनकर  आपके मस्तिष्क में इनका पहला और अंतिम उत्तर "नहीं" में आता है तो फिर किसी को "चमचा" बुलाने में और राजकुमार पर चुटकुले सुनने सुनाने में रस कम ही लें तो बेहतर है।

आपको ऐसा कहने का कारण मैं थोड़ा स्पष्ट कर देता हूं - 

ये बात तो बिल्कुल स्पष्ट है और सभी इस बात से सहमत होंगे कि जिस व्यक्ति को वर्तमान में देश के प्रमुख विपक्षी राजनीतिक दल का "मुखिया" बनाया जाना है वह निःसंदेह ही एक "अयोग्य" व्यक्ति है और अयोग्यता को जब सर पर बिठा लिया जाता है तो अयोग्यता के समक्ष मात्र "जी हुज़ूरी" करके और सर झुका करके देश के हर क्षेत्र में इतनी  अधिक सेंधमारी की जा सकती है कि हम और आप अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते, 

अयोग्यता तो मात्र "जी हुज़ूरी" का आनंद लेने में व्यस्त रहती है और "भारत विरोधी ताकतों" को अपने लक्ष्य पूर्ण करने के लिए मात्र एक ही काम करना होगा - उस अयोग्य व्यक्ति के समक्ष "जी हुज़ूरी" क्योंकि अयोग्य व्यक्ति सिर्फ इसी में रुचि रखता है कि अधिक से अधिक लोगों का सर उसके समक्ष झुका रहे।

अब स्वयं के समक्ष उन "झुके हुए मस्तिष्कों" की योजनाएं क्या हैं? उससे "अयोग्यता" को कोई सरोकार नहीं है, अयोग्यता तो गुलामी करवाने में रस लेती है।
और इसका मूल्य चुकाता है हमारा "राष्ट्र"।

अब आप कहेंगे कि अभी तो ये विपक्ष में हैं क्या ही कर लेंगे ये??

तो एक बात मैं आपके ध्यान में ला दूं कि अगर किसी राजनीतिक दल में किसी "अयोग्य व्यक्ति" को कोई उच्च और शक्तिशाली पद प्रदान कर दिया जाए तो उसके समक्ष वही लोग सर झुकाएंगे जो जिनकी "विचारधारा ही देश विरोधी" है क्योंकि जो देश हित चाहते हैं वो किसी भी पद पर "अयोग्य व्यक्ति" के आसीन होने का समर्थन नहीं करेंगे।

अब "अयोग्यता की छांव" में बैठे ये "देश विरोधी" लोग देशहित में होने वाले हर अच्छे निर्णय का अनावश्यक विरोध कर देश का समय नष्ट करेंगे और ऐसे निर्णय लेने पर बाध्य करेंगे जो इनके हित में हों।

उदाहरण के लिए धारा ३७० (article 370) हटाने और सीएए का विरोध बिल्कुल ही अनावश्यक था जिसमें देश की कितनी ऊर्जा और समय नष्ट हुआ और ये सब इनके विपक्ष में रहने के बाद ही हो रहा है।

और अगर ग़लती से ये लोग अब अगर सत्ता में आ जाते हैं तो क्या होगा?? 
 आज यह "अयोग्यता" किसी राजनीतिक दल की छाती पर बैठी है और कल देश छाती पर बैठ गई तो??

अब आप कहेंगे कि जीतेंगे ही नहीं तो कैसे बैठेंगे??? 

तो फिर ज़रा इतिहास याद कीजिए और बताइए कि -

"मोहम्मद गौरी की पृथ्वीराज चौहान से कोई टक्कर थी क्या"???

लेकिन क्या हुआ?? 
एक भूल हुई नहीं कि भारत की धरती ने सदियों की प्रताड़ना देखी और अगर जनता से क्रोध में आकर कोई भूल हो गई जो कि होती ही रहती है तो क्या क्या होगा ये हम और आप अनुमान भी नहीं लगा सकते।

मेरा तो यह मानना है कि अयोग्यता का तो हमारे विकल्पों में स्थान ही नहीं होना चाहिए।

आपने कभी इस बात पर ध्यान दिया है कि "प्राइम टाइम" वाले "तथाकथित निष्पक्ष पत्रकार" और "अर्बन नक्सली" इस "अयोग्य व्यक्ति" के देश के प्रमुख राजनीतिक दल के सिंहासन पर आसीन होने को लेकर कोई प्रश्न क्यों नहीं उठाते??
वरन् इस "अयोग्यता के पर्याय" व्यक्ति को स्टूडियो में आमंत्रित कर इस तरह से सवाल जवाब करते हैं कि मानो आकाश से कोई "बुध्दिजीवी" उतर आया हो।

इसका कारण साफ है कि इनके लक्ष्य ही बिल्कुल अलग हैं। (अर्बन नक्सली चाहते क्या हैं यह तो मैं आपको पिछले लेखों में काफी कुछ बता चुका हूं।)

वास्तव में होता यह है कि यह लोग उच्च पद पर "अयोग्यता" की "जी हुज़ूरी" करके  उसका संरक्षण प्राप्त करके अपना एजेंडा चलाते रहते हैं क्योंकि जिस "अयोग्य व्यक्ति" को इतना भाव दिया जा रहा है वह मस्तिष्क से भी बिल्कुल रहित है और बुद्धि तो उसको छू भी न सकी है इसी कारण वह इनके एजेंडे का अनुमान भी न लगा सकेगा वो तो बस उनके "झुके हुए सर" देखकर प्रसन्न होता रहेगा।

 जब यह अयोग्यता किसी  देश के सर पर थोप दी जाती है तो उस देश की जनता भी एक तरह की "हीन भावना" से ग्रसित हो जाती है और उसे राजनीति में एक प्रकार की "अरुचि" उत्पन्न हो जाती है। 
और २०१४ (2014) से पूर्व एक "प्रधानमंत्री की बेबसी" के कारण यही तो होता रहा था।

२०१४ के बाद युवा भी देश के नेतृत्व के निर्णयों में रुचि लेने लगे हैं और अपने विचार रखने लगे हैं जो कि पहले राजनीति से घृणा करते थे।
अगर "योग्य व्यक्ति" नेतृत्व करता है तो जनता में एक नई चेतना आ ही जाती है।

मेरा तो यह मानना है कि बजाय "चमचा" बोलने आपका उस राजनीतिक दल के हर एक कार्यकर्ता से यही प्रश्न होना चाहिए कि आप किसी योग्य व्यक्ति को अध्यक्ष पद देने की मांग क्यों नहीं उठाते?? 
राजनीतिक दल हर एक कार्यकर्ता का होता है न कि किसी एक "परिवार" का....
आप यही उनसे पूछें ताकि योग्य और सक्रिय व्यक्ति को अध्यक्ष पद पर आसीन करने की मांग के साथ हर एक कार्यकर्ता की चिठ्ठी "दस जनपथ" पहुंचे न कि सिर्फ गिनती के दो चार नेताओं की।

और शायद  इससे यह लाभ हो जाए कि इस "प्राचीनतम राजनीतिक दल" को भी एक "भारतीय मन" वाला भारत के हित के बारे में सोचने वाला नेता मिल जाए और अनावश्यक रूप से देशहित के निर्णयों में भी होने वाला टकराव समाप्त हो जाए‌ क्योंकि एक आम कार्यकर्ता की भी वही भाषा होती है जो कि राजनीतिक दल के नेतृत्व (leadership) की होती है।

और रही बात इस "प्राचीनतम राजनीतिक दल" के प्रति लोगों की घृणा की तो उस पर मैं एक ही बात कहूंगा कि अगर सुभाष चन्द्र बोस, सरदार वल्लभ भाई पटेल और लाल बहादुर शास्त्री जैसे लोग जब भी किसी भी राजनीतिक दल से निकलकर आए हैं तो उनको बिना राजनीतिक दल देखकर जनता हमेशा ही अपनाया है और सम्मान दिया है...

ये मेरे विचार हैं, हो सकता है कि ठीक हों या फिर बिल्कुल ही बकवास हों, आप पढ़कर एक बार विचार करें और...
इस लेख पर आप सब अपने विचार अवश्य व्यक्त करें 🙏🙏🙏

आगे मिलेंगे किसी अन्य लेख के साथ

तब तक के लिए

हर हर महादेव 🙏🙏🙏

लेख ✍️ - #सशक्त_भारत_श्रेष्ठ_भारत

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