मनुस्मृति: वामपंथियों के दुष्प्रचार का शिकार

मनुस्मृति: वामपंथियों के दुष्प्रचार का शिकार

सभी भग्नि बंधुओं को हर हर महादेव 🙏🙏🙏

आज बात करेंगे "मनुस्मृति" में वर्णित "वर्ण व्यवस्था" के बारे में। 

आपने कई "वामपंथियों" के मुंह से सुना या उनके "सोशल मीडिया वॉल" पर लिखा देखा होगा कि इस "मनुवादी सरकार" ने ये कर दिया, इस "मनुवादी सरकार" ने वो कर दिया, पर हम उनको प्रत्युत्तर नहीं दे पाते क्योंकि हमें पता ही नहीं है कि मनुस्मृति करता है और उसमें ऐसा क्या है कि यह "मनुस्मृति" का उल्लेख बार बार करते हैं। असल में "मनुस्मृति" पृथ्वी के प्रथम मानव कहे जाने वाले "मानव जाति" के जनक "महात्मा मनु" के द्वारा लिखा गया "सबसे पहला संविधान" है। अब मनुस्मृति "वर्ण व्यवस्था" पर क्या कहती है ये देखते हैं - 

मनुस्मृति में लिखा है कि

** "जन्मना जायते शूद्र:, कर्मणा द्विज उच्यते।।

 अर्थात जन्म से सभी शूद्र पैदा होते हैं एवं अपने कर्म के द्वारा ही ब्राह्मणत्व की अवस्था को प्राप्त होते हैं। 

मनुस्मृति में ही एक अन्य श्लोक में कहा गया है

**शूद्रो ब्राह्मणतामेति ब्राह्मणश्चैति शूद्रताम।
क्षत्रियाज्जातमेवं तु विद्याद्वैश्यात्तथैव च।

"महर्षि मनु" कहते हैं कि कर्म के अनुसार ब्राह्मण शूद्रता को प्राप्त हो जाता है और शूद्र ब्राह्मणत्व को। इसी प्रकार क्षत्रिय और वैश्य से उत्पन्न संतान भी अन्य वर्णों को प्राप्त हो जाया करती हैं। विद्या और योग्यता के अनुसार सभी वर्णों की संतानें अन्य वर्ण में जा सकती हैं।

**असल में ब्राह्मणत्व कोई जाति नहीं है एक अवस्था है जो कि अध्यात्मिक भाषा में कहा जाये तो "व्यक्ति के आत्मज्ञान प्राप्त करने के पश्चात् या ब्रह्म को जान लेने के बाद की अवस्था "ब्राह्मणत्व" और ब्राह्मणत्व को पा लेने वाला व्यक्ति "ब्राह्मण" कहलाता है। 

मनुस्मृति विश्व का सबसे पहला संविधान कहलाता है और उसकी व्यवस्था और मूल भावना भारत की आत्मा जो कि "अध्यात्म" है से अलिप्त नहीं रही है और व्यक्ति के वर्ण का निर्धारण उसकी "अध्यात्मिक प्रगति" के आधार पर किया गया है, जिसका उदाहरण हमें रामायण और महाभारत काल में मिलता है - "प्रभु श्रीराम" के गुरु "वशिष्ठ" जो कि एक चांडाल की संतान थे आगे चलकर एक ब्रह्मर्षि हुए। वेदव्यास एक मछुआ (निषाद) की संतान थे और विश्वामित्र एक क्षत्रिय थे परंतु दोनों बाद में अपने तपोबल के कारण "ब्रह्मर्षि" हुए। 

यह सब कहने का तात्पर्य सिर्फ इतना है कि वर्ण व्यवस्था "जन्म आधारित" न होकर "कर्म आधारित" रखी गयी था जो कि कालान्तर में "जन्म आधारित" होकर "जाति व्यवस्था" में परिवर्तित हो गयी। यही हमारे राष्ट्र का सबसे बड़ा दुर्भाग्य साबित हुआ और कारण उन्हीं मनु की कई संतानों को भेदभाव का दंश झेलना पड़ा। इसी कारण हमारे हिंदु समाज के एक बहुत बड़े वर्ग को काफी भेदभावपूर्ण व्यवहार का सामना करना पड़ा। 
और सबसे पहले अगर किसी ने भेदभाव की दीवारों पर चोट की थी वो थे "गौतमबुद्ध" 🙏🙏 

आज हमारे एक वर्ग के हिंदू भाइयों को कहा जाता है कि जिन भगवानों ने आपको भेदभाव से बचाने में मदद नहीं की उनमें आप क्यों श्रद्धा रखते हो और उन लोगों का धर्मांतरण करा देते हैं पर वो कुटिल उनको यह नहीं बतायेंगे कि "महात्मा बुद्ध" को हिंदू पुराणों में "विष्णु" का "दसवां अवतार" बताया गया है क्योंकि यह बताने से उनका धर्मांतरण का धंधा बंद हो जायेगा।

लेकिन भाइयों हम सबको हमारे "भेदभाव के शिकार" भाइयों और बहनों को यह बताकर उन्हें जागरूक करना है और भेदभाव के विरुद्ध एक युद्ध करना है जिस दिन हम उनको यह भरोसा दिलाने में सफल हो जायेंगे कि हमारे "भेदभाव के शिकार भाई बहन" हिंदु समाज का एक अभिन्न अंग हैं और हम भेदभाव को जड़ से मिटाने की प्रतिबद्धता के साथ अपनी पुरानी भूलों को सुधारने के लिए डटे हुए हैं तो हिंदू समाज अपने आप ही संगठित हो जायेगा। 

आगे फिर मिलेंगे किसी अगले लेख के साथ

तब तक के लिए
हर हर महादेव 🙏🙏🙏

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