वामपंथ : जनसमर्थन के रास्तों की नाकाबंदी



"वामपंथ : जनसमर्थन के रास्तों की नाकाबंदी"

सभी भग्नि बंधुओं को हर हर महादेव 🙏🙏🙏

 पिछले लेखों में मैंने आपको काफी सारी बातें समाझाने का प्रयास किया।
अब इस लेख के माध्यम से यह बताने का प्रयास करूंगा कि कैसे हम इन "अर्बन नक्सलियों" की हिंसा और देशद्रोह की विचारधारा को प्राप्त होने वाले जनसमर्थन के रास्ते बंद करें।

कम्युनिस्ट या वामपंथी, देश के आम नागरिकों का समर्थन समाज में व्याप्त कुछ मुद्दों के आधार पर प्राप्त करते हैं, अगर यह मुद्दे ही समाप्त हो जाते हैं तो ये अपनी हिंसक विचारधारा के लिए समर्थन ही नहीं जुटा पाएंगे।

उन मुद्दों में से एक का उल्लेख मैं आज यहां पर करना चाहूंगा

पहला - समाज में व्याप्त जातिगत असमानता (cast based inequality)।

इस पहलू को हम थोड़ा समझेंगे।

कम्युनिज्म की सफलता के लिए सबसे ज़्यादा आवाश्यक है समाज में व्याप्त असमानता और हमारा राष्ट्र और हिंदू समाज काफी समय तक इस प्रकार की असमानताओं से ग्रसित रहा है।

मनुस्मृति में वर्ण व्यवस्था को "कर्म आधारित" बताया गया है
(अधिक जानकारी के लिए मनुस्मृति पर लिखा लेख अवश्य पढ़ें जिसकी लिंक नीचे दी गई है) जो कि कालांतर में विकृतियों और समाज में व्याप्त स्वार्थी तत्वों द्वारा "जन्म आधारित" कर दी गई और तभी से हिंदू समाज का एक वर्ग भेदभाव का शिकार होना प्रारंभ हो गया, तभी से उस वर्ग के हिंदू भाइयों बहनों को स्वच्छंद होकर धर्म का पालन करने और धार्मिक स्थलों में पूजा करने के अधिकार से भी वंचित होना पड़ा जो कि बिल्कुल ही अकारण और अमानवीय भी था क्योंकि धर्म एक निजी मामला है उसे पालन करने का अधिकार सबको समान रूप से होना चाहिए।

कई सारे गांवों में आज भी हिंदू समाज के ही एक वर्ग के लोगों को मंदिरों में प्रवेश ही अनुमति नहीं है और यही सबसे बड़ा कारण धर्म परिवर्तन का भी है अन्यथा मुक्ति और आत्मज्ञान प्राप्त करने के जितने संभव मार्ग हैं , वह भारतीय सनातन संस्कृति में खोज लिए गए हैं जबकि अन्य धर्मों में मुक्ति का एकमात्र मार्ग सिर्फ प्रार्थना ही बताया गया है।
भेदभाव के अतिरिक्त और कोई कारण नहीं है धर्म परिवर्तन का।

 अभी भी हिंदू समाज में संस्कृत विश्वविद्यालयों में अध्ययन के लिए एवं मंदिरों में पुजारी, पंडित, पुरोहितों के रूप में सेवाएं देने के लिए आपका जातिगत ब्राह्मण होना आवश्यक है जबकि इन सेवाओं को देने की पात्रता ज्ञान और शास्त्रों का अध्ययन होनी चाहिए थी ताकि मात्र किसी एक ही वर्ग का प्रतिनिधित्व धार्मिक स्थलों में न रहे लेकिन दुर्भाग्यवश हुआ यही।

सिर्फ एक ही जाति वर्ग के लोगों ने धार्मिक स्थलों का नेतृत्व किया उससे हिंदू समाज को काफी नुकसान उठाना पड़ा है और यहीं पर वामपंथियों ने सबसे अधिक लोगों को बरगलाया है क्योंकि वामपंथी तो वैसे भी धर्म की आवश्यकता को ही नकारते हैं और "हमारे हिंदू समाज में में व्याप्त विकृतियों को वामपंथियों ने सनातन धर्म की विकृतियों के रूप में प्रस्तुत किया,

ऐसा कहकर कि यह पूरा धर्म ही भेदभावपूर्ण है और सनातन धर्म को सिर्फ ब्राह्मणों का धर्म सिध्द करने का प्रयास आज तक किया जा रहा है। वामपंथी यहां तक कह रहे हैं कि राम मंदिर बनने पर बाकी वर्गों के लोग प्रसन्न क्यों हो रहे हैं यह तो सिर्फ ब्राह्मणों के पैसा कमाने का साधन है और उससे आपको कुछ प्राप्त नहीं होने वाला है हालांकि वो बात अलग है कि मंदिर बनने से अयोध्या एक बड़े पर्यटन स्थल के रूप में उभरेगी तो रोजगार तो हर वर्ग और यहां तक कि हर धर्म के लोगों को मिलेगा। 
लेकिन यहां वह रोजगार को छोड़कर धार्मिक स्थलों में नेतृत्व की बात करके लोगों को बहका रहे हैं और भड़काना तो वैसे भी आसान काम ही है, मुश्किल तो हमारा काम है जो सबको जोड़ना चाह रहे हैं।

हिंदू समाज को अलग-अलग वर्गों में बांटकर अलग-थलग करने का प्रयास किया जा रहा है, विशेषकर ब्राह्मणों को, 
ये कभी भी सीधे सीधे हमला नहीं करते ये "ब्राह्मणवाद और मनुवाद" जैसे शब्दों का प्रयोग करके हमला करते हैं ताकि ब्राह्मणों को अलग-थलग करके उन पर हमला किया जाए ताकि ब्राह्मणों को छोड़कर अन्य हिंदू समाज वामपंथियों का विरोध न करें, समाज के वर्गों को अलग-थलग कर उन पर हमला करना वैसे भी इनकी रणनीति का हमेशा से ही हिस्सा रहा है।

अब इसका समाधान क्या है?? 

इसके कारण में ही इसका समाधान छुपा हुआ है। वामपंथी हिंदू समाज के एक वर्ग के लोगों को इसीलिए भड़का पा रहे हैं क्योंकि अभी धार्मिक स्थलों में हिंदू समाज के जन्म से ब्राह्मण लोगों का ही नेतृत्व है अन्य वर्गों के लोगों का नेतृत्व न के बराबर ही है, बस आर्य समाज में ही सभी वर्गों के विद्वान आपको मिल जाएंगे लेकिन हिंदू समाज में अभी भी एक वर्ग के लोगों के हाथों में ही धर्म ध्वजा है।
इस चीज़ को बदलना बहुत आवाश्यक है और वो इस तरह होगा कि 

"हमें हमारे धार्मिक स्थलों में सेवाएं देने की पात्रता को सिर्फ ब्राह्मण होने के बजाय हिंदू होने को कर देना चाहिेए, वह हिंदू जिसे शास्त्रों, पूजा पध्दति और कर्मकांड सबका ज्ञान हो वो धार्मिक स्थलों में सेवाएं देने के लिए सुपात्र माना जाए"

क्योंकि इससे हिंदू समाज के सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व धार्मिक स्थलों में होगा उससे यह लाभ होगा कि वामपंथियों के द्वारा हिंदू संस्कृति पर हमला किया जाएगा तो हिंदू समाज के हर वर्गों में से उनके विरोध में आवाज़ उठेगी और हिंदूओं को जाति के आधार पर तोड़ना संभव नहीं हो पाएगा।

अगर आप चाहते हैं कि सनातन के सभी अनुयायी स्वयं को सनातनी हिंदू ही माने और धर्म रक्षा के लिए हमेशा तत्पर रहें तो हम सभी को सबको जाति के आधार पर नहीं हिंदू होने के आधार पर ही अधिकार देने होंगे तभी यह संभव हो पाएगा।

दूसरी बात यह कि जिन ग्रामीण क्षेत्रों में हमारे हिंदू समाज के जिन भग्नि बंधुओं को धार्मिक स्थलों में प्रवेश की अनुमति नहीं है उन्हें बिना विलम्ब धार्मिक स्थलों में प्रवेश की अनुमति दी जाए और इसके लिए हमें बड़े स्तर पर जागरूकता अभियान चलाना होगा। 

चूंकि यह बात सभी अर्थों में सत्य है कि ब्राह्मण ही धर्म का नेतृत्व करते आ रहे हैं और कर रहे हैं इसलिए इन दोनों ही कार्यों को संपन्न करने के लिए हमें ब्राह्मण बंधुओं का पूर्ण सहयोग और समर्थन चाहिए क्योंकि अगर सभी ब्राह्मण बंधु एक स्वर में इन दोनों बातों की सामूहिक रूप से स्वीकृति की घोषणा कर दें तो भेदभाव जल्दी ही समाप्त हो जाएगा क्योंकि जो धार्मिक स्थलों का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं।

 वही लोग इन दोनों बातों पर सहमति बना लेंगे तो हिंदू समाज के अन्य लोगों को इन दोनों बातों पर सहमति बनाने में कोई अधिक समस्या नहीं आएगी।

मंदिरों में सबको प्रवेश प्रदान करने पर तो सबकी सहमति आसानी से बन जाएगी लेकिन वैदिक संस्कृत विद्यालयों में सभी वर्गों के लोगों के अध्ययन की व्यवस्था को लेकर शायद कई लोग सहमत न हों तो उनसे मैं सिर्फ इतना ही कहना चाहूंगा कि अगर आपको लगता है कि "सनातन धर्म पर संकट छाया हुआ है और धर्म के विरुद्ध तरह तरह के षड्यंत्र रचे जा रहे हैं जिनका प्रत्युत्तर दिया जाना चाहिए और सनातन की रक्षा के लिए सभी हिंदूओं को खड़े होना चाहिए तो फिर आपको उनको अधिकार भी हिंदू की तरह ही देने होंगे, जाति या वर्ग के आधार पर नहीं ताकि सभी वर्गों के लोगों का हिंदू होने का भाव और प्रबल हो
और लोग स्वयं को "हक़ से हिंदू" कहें।

यह सब जो मैंने लिखा है यह ब्राह्मण बंधुओं के समर्थन के बिना संभव नहीं है हर व्यक्ति कम से कम कम पांच ब्राह्मण मित्रों को इसके लिए तैयार करे और सभी ब्राह्मण बंधु कम से कम पचास ब्राह्मण बंधुओं से इस विचार के लिए समर्थन प्राप्त करें तभी जाकर स्थिति में बदलाव आएगा।

थोड़ी हिम्मत लगेगी इस काम के लिए...... बदलाव के लिए हिम्मत लगती ही है लेकिन अब हिम्मत कर लीजिए क्योंकि अब अगर चूक गए तो बात हमारे हाथ से निकल जाएगी।

आगे लेखों के माध्यम से अन्य पहलुओं को भी आपको समझाता रहूंगा।

तब तक के लिए 

हर-हर महादेव 🙏🙏🙏

लेख ✍️ - #सशक्त_भारत_श्रेष्ठ_भारत

( मनुस्मृति : वामपंथियों के दुष्प्रचार का शिकार

https://sashaktbharatshreshthbharat.blogspot.com/2020/07/blog-post_17.html?m=1 )

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