अर्नब और "अयोग्य सत्ताधारियों" के मध्य संघर्ष
हर-हर महादेव 🙏🙏🙏 ये कोई दो चार दिन पहले शुरू नहीं हुआ और ऐसी घटनाओं की कहानियां दो चार दिन पुरानी हो भी नहीं सकतीं। इस घटना की पटकथा तो उसी दिन लिखी जा चुकी थी जब शिवसेना की गद्दी पर "योग्यता" को ठोकर मारकर एक "अयोग्य व्यक्ति" को उस गद्दी पर थोप दिया गया था।पहली ग़लती तो यहीं हो गई थी और दूसरी ग़लती हुई उस राजनीतिक दल के प्रति अटूट निष्ठा रखने वाले लोगों से, उनकी निष्ठा सचमुच अटूट ही थी। अयोग्यता भी उस राजनीतिक दल के प्रति उनकी निष्ठा को नहीं तोड़ सकी। और वो निष्ठा टूटती भी कैसे?? लोगों ने निवेश किया था भाई.... अपने समय का निवेश.... अपनी भावनाओं का निवेश.... भरोसा किया था किसी राजनीतिक दल पर.... इतने सालों का अपनी भावनाओं का निवेश अपनी निष्ठा का निवेश। लोगों को लगा था कि वह राजनीतिक दल उनकी भावनाओं को प्रतिबिंबित करता है, और लगे भी क्यों न?? उस राजनीतिक दल के मंचों से बातें भी उसी तरह की ही की जाती थीं। मुश्किल होता है कि यूं ही सालों से चली आ रही किसी के प्रति अपनी निष्ठा को 1 दिन के अंदर ही समाप्त कर देना लेकिन ना उस राजनीतिक दल के